1857 का विद्रोह सिपाहियों के असंतोष का परिणाम मात्र नहीं था। वास्तव में यह औपनिवेशिक शासन के चरित्र, उसकी नीतियों, उसके कारण कंपनी के शासन के प्रति जनता के संचित असंतोष का और विदेशी शासन के प्रति उनके गिरना का परिणाम था।
एक शताब्दी से अधिक समय तक अंग्रेज इस देश पर धीरे-धीरे अपना अधिकार बढ़ाते जा रहे थे, और इस काल में भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों में विदेशी शासन के प्रति जन-असंतोष तथा घृणा में वृद्धि होती रही। यही वह असंतोष था जिसका अंतिम रूप में जन विद्रोह के रूप में उभरा।
1857 का विद्रोह ब्रिटिश नीतियों और साम्राज्यवादी शोषण के प्रति जन असंतोष का उभार था। परंतु यह आकस्मिक घटना नहीं थी। लगभग एक शताब्दी तक पूरे भारत में ब्रिटिश अधिपत्य के विरुद्ध जन-प्रतिरोध होते रहे थे।
1857 के समय भारत (एक नजर में)
1857 के विद्रोह के समय इंग्लैंड के प्रधानमंत्री पार्मस्टन थे।
1857 के विद्रोह के समय भारत का गवर्नर जनरल लार्ड कैनिंग (1856-1858) थे।
भारत के प्रथम वायसराय लॉर्ड कैनिंग थे ।
1857 के विद्रोह के समय कंपनी का मुख्य सेनापति चार्ज एनिसन थे।
1857 के विद्रोह के समय सेना का मुख्य कार्यालय शिमला में था।
1857 के विद्रोह के समय तोपखाना का मुख्य कार्यालय मेरठ में था।
1857 से पूर्व मुद्रित भूमिगत अखबार मेरठ से ' द मफस लाइट निकलता था , जिसके संपादक जॉन लैंग (24 फरवरी 1846)थे ।
1857 के विद्रोह के समय भारत का बादशाह बहादुर शाह जफर थे।
1857 के झण्डा गीत की रचना अज़ीमुल्ला ने की थी।
1857 के विद्रोह के समय ' आजाद -ए - पयामी ' क्रांतिकारी अखबार के संपादक "मिया बेदार बख्त " थे ।
1857 के विद्रोह की महत्वपूर्ण तिथियां
29 march :- कोलकाता से 16 km दूर बैरकपुर छावनी में 34 वीं नेटिव इनफैट्री के सिपाही मंगल पांडे ने गाय की चर्बी युक्त कारतूसो को चलाने से साफ इंकार कर दिया।
8 aparil :- इस बगावत के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने बैरकपुर में सिपाही मंगल पांडे को फांसी दे दी तथा पूरी छावनी को सील कर दिया।
9 may :- मेरठ छावनी स्थित एक रेजिमेंट के 85 घुड़सवार सैनिकों ने रंगून से आए चर्बी युक्त कारतूसों को हाथ लगाने से भी मना कर दिया , जिसके बाद अंग्रेजी साम्राज्य ने इन सभी सैनिकों को बागी करार देते हुए उन्हें 10-10 वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाते हुए कारागार में डाल दिया।
10 may :- मेरठ छावनी के 3 रेजीमेंटो के सिपाहियों ने अंग्रेजी हुकूमत से बगावत कर वहां शस्त्रागार को लूट लिया। इसके बाद इन सैनिकों ने Delhi की ओर कूच कर दिया।
11 may :- Delhi पर क्रांतिकारियों का कब्जा तथा अंतिम मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर को इस स्वतंत्रता संग्राम का नेता बनाने के बाद बादशाह- ए -हिंदुस्तान के रूप में बहादुरशाह जफर को की ताजपोशी की गई।
12 से 31 may :- इस दौरान मुजफ्फरनगर, इटावा, मथुरा, लखनऊ, शाहजहांपुर, बरेली तथा अलीगढ़ अधिक में क्रांति भड़की।
30 may :- गाजियाबाद में क्रांतिकारियों व अंग्रेजी सेना के बीच हिंडन नदी के तट पर लड़ाई हुई । अंग्रेजी सेना का कैप्टन एंड्रयूज व 11 सार्जेंट मारे गए व अंग्रेजी सेना को यहां से पीछे हटना पड़ा।
6 june :- Kanpur में नाना साहब ने अपने साथी क्रांतिकारियों के साथ क्रांति का बिगुल बजाते हुए Kanpur में डेरा डाला।
7 june:- झांसी के किले पर क्रांतिकारियों ने कब्जा कर रानी लक्ष्मीबाई का फिर से राज्यारोहण किया ।
27 june :- नाना साहेब ने अंग्रेजी हुकूमत से Kanpur जीत लिया। अंग्रेजी सेना को Kanpur से भागना पड़ा।
12 july :- फतेहगढ़ मैं टीका सिंह व ज्वाला प्रसाद के नेतृत्व में लड़ रहे क्रांतिकारियों की पराजय हुई।
27 july :- बिहार के आरा जनपद में कुंवर सिंह ने क्रांतिकारियों के साथ मिलकर वहां से अंग्रेजी सेना को पराजित कर अपना कब्जा कर लिए।
3 August :- अंग्रेजों ने आरा जनपद पर फिर से अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया।
13 August :- जगदीशपुर में कुंवर सिंह अंग्रेजी सेना से पराजित हुए।
16 August :- बिठूर में तात्या टोपे पराजित हुए।
14 September :- Delhi का Kashmiri गेट पर क्रांतिकारियों ने कब्जा कर लिया तथा बारूद से उड़ा दिया। अंग्रेजी हुकूमत ने यहां पर भारी संख्या में गोला बारूद एकत्र कर रखा था।
20 September :- Delhi को अंग्रेजों ने फिर से अपने कब्जे में ले लिया।
21 September:- क्रांतिकारियों के नेता तथा अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर ने हुमायूं के मकबरे पर अंग्रेजी सेना के सामने आत्मसमर्पण किए।
22 September :- अंग्रेज अधिकारी मेजर हडसन द्वारा बहादुर शाह जफर के पुत्रों की गिरफ्तारी के बाद हत्या करवा दी गई।
27 October :- तात्या टोपे ने कानपुर पर कब्जा किया। अंग्रेजी सेना को यहां से भागना पड़ा था।
6 December :- तात्या टोपे अंग्रेज अधिकारी कैंपवेल के हाथों पराजित होकर Kanpur से भाग निकले। इसके बाद वह झांसी पहुंचकर रानी लक्ष्मीबाई से जा मिले। यहां पर कालपी का युद्ध हुआ। यहां से भी तात्या टोपे को पीछे हटना पड़ा ।
1857 की क्रांति की विफलता के महत्वूर्ण कारण
विद्रोहियों के पास कोई एक विचारधारा नहीं थी। विद्रोहियों के नेतृत्वकर्ता विभिन्न वर्गो विभिन्न, हितों का प्रतिनिधित्व करते थे।
ध्रुव को अपनी परिणीति तक पहुंचाने के लिए उन्होंने कोई सुनियोजित कार्यक्रम नहीं बनाया था।
विद्रोह का प्रसार देशव्यापी ना होकर सीमित था । दक्षिण भारत एवं पूर्व भारत के अधिकतर क्षेत्र विद्रोह से अछूते रहे। सीखो ने भी विद्रोहियों का साथ नहीं दिया।
भारतीय में एकता का भाव था, तथा भारतीयों को शिक्षित भारतीयों का सहयोग नहीं मिला।
विद्रोहियों को कुशल एवं सुयोग्य नेतृत्वकर्ता नहीं मिला, जबकि ईस्ट इंडिया कंपनी को सुयोग्य सेनापतियों की सेवाएं प्राप्त थी।
क्रम संख्या |
पुस्तक का नाम |
लेखक का नाम |
01 | कॉलेज ऑफ द इंडियन म्यूट म्यूटिनी | सर सैयद अहमद खान |
02 | रिवेलीयन 1857 | पी.सी. जोशी |
3 हिस्ट्री ऑफ इंडियन म्यूटीनी - टी.आर. होम्स
4 एटिन फिफ्टी सेवेन. - एस. एन. सेन
5 द ग्रेट रिबेलीयन. - अशोक मेहता
6 फास्ट वार ऑफ इंडिपेंडेंस - विनायक दामोदर सावरकर
7 सीपोय म्यूटिनि एंड द रिवोल्ट ऑफ 1857 - आर.सी. मजूमदार
1857 के विद्रोह पर इतिहासकारों का मत
भारतीय इतिहासकार:-
क्रम संख्या इतिहासकार का नाम मत
1 अशोक मेहता - '1857 के विद्रोह का स्वरूप राष्ट्रीय था'
2 मुंशी जीवनलाल, मुइनुद्दीन - 1857 का विद्रोह एक सैनिक विद्रोह था
3 विपिन चंद्रा - 1857 का विद्रोह विदेशी शासन से राष्ट्र को मुक्त कराने का आदेश भक्तिपूर्ण प्रयास था।
4 वी. डी. सावरकर - 1857 का विद्रोह एक सुनियोजित राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम था।
5 डॉ. S.N. सेन - जो कुछ धर्म के लिए लड़ाई के रूप में शुरू हुआ, वह स्वतंत्रता संग्राम के रूप में समाप्त हुआ।
6 P.C. जोशी - यह राष्ट्रीय और सामान्य जनता तक फैला हुआ विप्लव था।
7 Dr. R. C. मजूमदार - तथाकथित प्रथम राष्ट्रीय संग्राम ना तू पहला ही, नाही राष्ट्रीय तथा नाही स्वतंत्रता संग्राम था
विदेशी इतिहासकार:-
क्रम संख्या इतिहासकार का नाम मत
1 जॉन ब्रूसनार्ट - 1857 का विद्रोह सैनिक विद्रोह ना होकर नागरिक विद्रोह था।
2 T. ह्विलर - यह एशियाई प्रकार का विद्रोह था।
3 जेम्स आउटट्रम और W. टेलर - अंग्रेजों के विरुद्ध हिंदू मुसलमानों का षड्यंत्र था।
4 सर जॉन सिले - यदि विद्रोह पूर्णतया देशभक्ति रहित स्वास्थ्य पूर्ण सैनिक विद्रोह था, जिसका ना कोई नेतृत्व था ना कोई जनसमर्थन
5 वैजामिन डिजराईली - 1857 का विद्रोह एक राष्ट्रीय विद्रोह था।
6 P. राबर्टसन - 1857 का विद्रोह केवल एक सैनिक विद्रोह था जिसका तत्कालिक कारण चर्बी युक्त कारतूस था।
7 रोज - यहां ईसाई धर्म के विरुद्ध एक धर्म युद्ध था।
8 रावर्टस एवं मिसेज कूपलैंड - यह वस्तुतः मुस्लिम षड्यंत्र था ।
9 T. R. होम्स - यह सभ्यता एवं बर्बरता का संघर्ष था
10 मेंटकाफ व पर्सीवल स्पियर - यह पुनर्स्थापनावादी आंदोलन था।
11 सर जॉन लारेन्स । - यदि विद्रोहियों में कोई भी एक नेता होता तो हम सदैव के लिए हार जाते हैं।
12 सर जॉन लारेन्स एवं सींले - यह पूर्णतया सिपाही विद्रोह था।
1857 पर आधारित फिल्में:-
क्रम संख्या - फिल्म का नाम - किस सन में बनाई गई - फिल्म के बारे में
1 - 1857 - 1946 - निर्देशांक मोहन सिन्हा की या फिल्म आजादी के 1 वर्ष पहले रिलीज हुई थी गदर को विषय बना कर बनने वाली यह पहली हिंदी फिल्म थी।
2- वीरांगना - 1947 - इस फिल्म के निर्देशक नंदलाल जसवंतलाल थे। फिल्म के अभिनेत्री नूतन और तनुजा की मां शोभना समर्थ थी।
3 - लाल किला - 1960 - इस फिल्म के निर्देशक नानाभाई भट्ट थे। अभिनेता पी जयराज थे और उनके साथ हेलन, बी. एम. व्यास थे।
4 - झांसी की रानी - 1953 - सोहराब मोदी की इस फिल्म को निश्चित तौर पर पुराने दौर में 1857 पोर्न फिल्म बनाने का सबसे प्रभावशाली वह सफल प्रयास था। सोहराब मोदी की झांसी की रानी भारत की प्रथम टेक्निकलर फिल्म थी।
5 - जुनून - 1978 - विद्रोह और बगावत की पृष्ठभूमि में यह एक प्रेम कहानी है। 1857 को मंगल पांडे की फांसी के बाद इस शहीद की गाथा पूरे देश में फैल चुकी थी। श्याम बेनेगल की यह फिल्म अद्वितीय थी।
6 - शतरंज के खिलाड़ी - 1977 - मुंशी प्रेमचंद की कहानी पर आधारित सत्यजीत रे की इस पहली हिंदी फिल्म की कहानी गदर से 1 वर्ष पहले 1856 की है। कहानी अंग्रेजों द्वारा अवध पर कब्जा और उसकी पृष्ठभूमि में अंग्रेजों और नवाबों के चरित्र को स्पष्ट करती है।
7 - मंगल पांडे - 2005 - मंगल पांडे के चित्रण को लेकर या फिल्म लगातार विवाद में रही। निर्देशक केतन मेहता ने इस शहीद का चित्रण ठीक से नहीं किया।
8- जानिसार - 2015 - अवध के नवाब वाजिद अली शाह पर आधारित 1857 का विद्रोह की पृष्ठभूमि इसका केंद्र बिंदु है।
इस फिल्म में बेगम हजरत महल के पुत्र बिरजिस कादिर इंग्लैंड से शिक्षा प्राप्त करके भारत आने के बाद अंग्रेजों के दमनात्मक नीति को देखा तो अंग्रेजों की सच्चाई का ज्ञान हुआ। मुजफ्फर अली के निर्देशन में बनी फिल्म है।